कभी इस सीने से
“दर्द” इस तरह उठता है
कि जैसे किसी ने
आयने पर पत्थर मार दिया हो,
लेकिन उस पत्थर को क्या मालूम
कि जब आयने के टुकड़े होते है
तो कितना बिख़र जाता है,
बहुत बेरहम है वो पत्थर
जो किसी आयने को न समझ सका|
उस “पत्थर”को क्या फर्क पड़ता है
किसी “आयने” के बिख़र जाने से,
ये तो वही जनता है
जो इस आयने के “टुकड़े” की
आवाज़ सुनता है,
और वो आवाज़ “दिल” और “दिमांग “में
बार बार आ कर मुझे ही तड़पती है
और “सीने” में बिख़र जाती है|
By:-HARENDRA SINGH
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