एक सितम्बर से एक चीज़ का बहुत ही शोर मचा हुआ है. हर जगह इसी की चर्चा हो रही है. हर पान वाले के खोखे पे, हर चाय की टपरी पर भी. यहाँ तक 1 सितम्बर से घर में पापा भी खूब चर्चा कर रहे हैं. अब तो समझ ही गए होने कि यहाँ किस बात की चर्चा हो रही है. आजकल शोर मचा हुआ है कि नए ट्रैफिक रुल बहुत सख्त हो गये हैं. जरा सी गलती हुई नही कि लग गया चूना. हेलमेट नही तो एक हज़ार हो गए सीधे. अलग अलग कागजों के बिना गाडी चलाने पर पकडे जाने पर अलग अलग जुरमाना राशि रखी गई है. और इन्हीं नियमों की चर्चा हर जगह हो रही है.
कुछ लोग कह रहे हैं कि ये बहुत सख्ती है. अरे भाई जब नहीं था सख्त, तब क्यों नहीं इसको फॉलो करते थे? अब डर की वजह से ही सही, दो-चार दिन में तगड़े चालान कटे नहीं और उनकी खबरें सुनीं नहीं कि डर से सब के सब लाइन पर आ जाएंगे. इसी डर की वजह से आपको अब सड़कों पर 14-15 साल का लड़का बाइक से कलाबाजियां करता हुआ नहीं दिखेगा. जिसे देखो वो कोई रांग साइड में गाड़ी को तूफानी तरीके से लिए घूमता रहता था. कोई हेलमेट को अपने खूबसूरत चेहरे की शान में अपमान मानता था, कोई सीट बेल्ट को बिना काम का सामान मानता था…कोई दारू पीकर कार को हवाई जहाज समझता था. कोई बिना कागज-लाइसेंस के तूफान मचाता था…अब सबको पहली बार समझ में आ रहा है कि हीरोगीरी महंगी पड़ेगी तो शोर मचा रहे हैं कि यह सख्ती गलत है. एकदम ठीक कदम है, बात से जब कोई नहीं मानने को तैयार है तो फिर इधर चालान कटा, उधर पापा की डांट पड़ेगी, फिर कुछ दिनों तक गाडी घर की पार्किंग की शान बढ़ाएगी. जिससे जाम में भी राहत देखने को मिलेगी.
कुछ लोग ये दलील भी दे रहे हैं कि ट्रैफिक पुलिस वाला अब ज्यादा घूस लेकर सेटल होगा, लेकिन इसके पीछे ये डर भी काम कर रहा है कि अगर घूस देकर मामला सेटल नहीं हुआ तब तो बड़ा चूना लगेगा यानी डर भरपूर है और इसी डर की ज़रूरत देश को है। हालाँकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा कि इन नए जुर्माने का कुछ फायदा होता है या नहीं. या फिर जो इन नियमों को लेकर जो जोक चल रहे हैं वो कहीं वाकई में सच न हो जाएँ.
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